श्री साईं बाबा के 11 वचन (Sai ke 11 Vachan) से पहले हम जिक्र करना चाहेंगे उनेक द्वार बताये गए मार्गों का। साईं अपने दर्शन में श्रद्धा, सबुरी , दया और शुद्धता पर जोर दिया है ओ इस प्रकार है :
श्रद्धा
श्रद्धा, या प्रेम, आस्था और सत्य, एक अद्वितीय भावना है जो आध्यात्मिक ऊर्जा से जन्मता है। यह विश्वास अनंतता में आत्मा को जोड़ता है, जैसा कि साईं बाबा ने कहा, “प्रेम ईश्वर में एक अविनाशी बंधन है।” भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को समझाया: “जो भी कुछ भक्ति और प्रेम से मुझे समर्पित करता है, वह मेरे द्वारा तुरंत स्वीकार होता है।”
सबुरी
सहनशीलता, या धैर्य और स्थैर्य, मुक्ति के मार्ग पर चलने वाले साधक के लिए आवश्यक है। सफलता के लिए, साधक को धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है।
दया
साईं बाबा ने अपने शिष्यों को दया की महत्वता सिखाई। उनका संदेश था कि हर जीव को प्रेम से देखा जाए और किसी भी जीव को अपने द्वार पर आने से रोका नहीं जाना चाहिए।
समर्पण
गुरु के प्रति समर्पण, जो भक्ति मार्ग का आधार है, साधक के लिए महत्वपूर्ण है। साईं बाबा ने अपने भक्तों से गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण की अपील की।
शुद्धता
साईं बाबा ने आत्मिक शुद्धता को महत्व दिया। उनका संदेश था कि आत्मा की पवित्रता शरीर की पवित्रता से अधिक महत्वपूर्ण है। आत्मा की शुद्धता ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है।
साई के ११ वचन (Sai ke 11 Vachan) में भी श्रद्धा सबुरी दया और समर्पण निहित है।
साईं बाबा के 11 वचन (Sai ke 11 Vachan)
पहला वचन
जो शिरडी में आएगा। आपदा दूर भगाएगा।
इस पहले वचन में, साईं अपने भक्तों को शिर्डी आने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें आश्वस्त करते हैं कि जो भी शिर्डी में आएगा, उसकी सभी संकट समाप्त हो जाएँगे।
दूसरा वचन
चढ़े समाधि की सीढ़ी पर। पैर तले दुःख की पीढ़ी कर।
यह दूसरे वचन में साईं के सन्देश को साधकों के दुःख को दूर करने के लिए संदेशित करता है। इसके लिए, साईं के प्रति श्रद्धा और सहनशीलता अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
तीसरा वचन
त्याग शरीर चला जाऊँगा। भक्त-हेतु दौड़ा आऊँगा।
इस तीसरे वचन में, साईं कहते हैं कि वे शरीर का त्याग कर देंगे, परन्तु अपने भक्तों की पुकार को सुनकर वे उनके सहायता के लिए आगे बढ़ेंगे।
चौथा वचन
मन में रखना दृढ़ विश्वास। करे समाधि पूरी आस।
दृढ़ विश्वास रखें, समाधि की पूर्ति की आस रखें। इस चौथे वचन में, साईं कहते हैं कि मुश्किल में हर भक्त को दृढ़ विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि उन्हें समाधि के माध्यम से समस्याओं का समाधान प्राप्त होगा।
साईं बाबा का पांचवां वचन
मुझे सदा जीवित ही जानो। अनुभव करो सत्य पहचानो।
मुझे हमेशा जीवंत धरो। सत्य को पहचानो, इस पांचवे वचन में, साईं कहते हैं कि मेरा अस्तित्व केवल शरीर तक सीमित नहीं है, बल्कि मैं हमेशा परमात्मा का अंश रहूंगा। अपने प्रेम और भक्ति के बल से मेरे भक्त सत्य को पहचान सकते हैं।
साईं बाबा का छठा वचन
मेरी शरण आ खाली जाये। हो तो कोई मुझे बताये।
मेरी शरण में आओ, पूरी सहायता प्राप्त करो। जो कुछ भी चाहो, वह तुमसे दूर नहीं है। इस छठवें वचन में, साईं अपने भक्तों से कहते हैं कि जो भी पूरी श्रद्धा के साथ मेरे पास आता है, उसकी हर इच्छा मैं पूरी करता हूँ। अगर कोई अपूर्ण मांग लेकर मेरे पास आता है, तो मुझे बताओ।
साईं बाबा का सातवां वचन
जैसा भाव रहा जिस जन का। वैसा रुप हुआ मेरे मन का।
जैसा भाव, वैसा रुप। जो मन में है, वह मनिबन्ध। सातवें वचन में, साईं बताते हैं कि उनके भक्त की भावनाओं के अनुसार, वे अपना स्वरूप प्रकट करते हैं।
साईं बाबा का आठवां वचन
भार तुम्हारा मुझ पर होगा। वचन न मेरा झूठा होगा।
भार तुम्हारा, मेरे ऊपर। मेरे वचन सच होंगे, कभी झूठे नहीं। इस आठवें वचन में, साईं कहते हैं कि जो भी पूरी श्रद्धा के साथ उनके पास आता है, उसका सम्पूर्ण भार साईं उठाते हैं, और उनके वचन कभी झूठे नहीं होते।
साईं बाबा का नौवां वचन
आ सहायता लो भरपूर। जो मांगा वह नहीं है दूर।
सहायता लो, जो भी चाहो, वह दूर नहीं है। नौवें वचन के अनुसार, जो भी साईं से कुछ मांगता है, उसे निश्चित रूप से प्राप्त होगा।
साईं बाबा का दसवां वचन
मुझ में लीन वचन मन काया। उसका ऋण न कभी चुकाया।
जिसका मन, वचन और शरीर मुझ में लीन है, उसका मैं ऋणी हूँ । दसवें वचन में, साईं कहते हैं कि जो मन वचन और काया से पूजा करता है , उसका ऋण मैं नहीं चूका सकता हूँ अर्थात में उसका ऋणी रहूँगा ।
साईं बाबा का एग्यारहवाँ वचन
धन्य-धन्य वह भक्त अनन्य। मेरी शरणतज जिसे न अन्य।
धन्य है वह भक्त, जो अनन्य है। मेरी शरण में आने वाले, उनसा कोई अन्य नहीं है मेरे लिए । ग्यारहवें वचन में, साईं कहते हैं कि जो भक्त अनन्य भाव से साईं की शरण में आता है, वह धन्य हैं, क्योंकि उन्हें साईं का विशेष प्रेम प्राप्त होता है।
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