मर्यादा पुरुषोत्तम राम के धरती पर अवतरण के प्रसंग को स्वामी तुलसीदास जी ने पवित्र रामचरित मानस में बहुत ही सरल और अलौकिक वर्णन राम स्तुति भये प्रगट कृपाला (Bhaye Pragat kripala) में किया है| इस प्रसंग में राम के अयोध्या आने के अवसर पर वहां के आनंदमय माहौल को बहुत ही अद्भुत चित्रण किया गया है |
स्तुति भये प्रगट कृपाला (Bhaye Pragat kripala)
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी ।।
अर्थ : माता कौशिल्या जी के परोपकारी पुत्र और गरीबों पर दया करने वाले कृपालु इस्वर आज धरा पर प्रकट हुये हैं। प्रसन्नता के साथ सभी मातायें और मंत्रमुग्ध होकर सभी ऋषि मुनि भगवन के अदभुत रूप को निहारते (देखते ) रह गए ।
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ।।
अर्थ : जिनका दर्शन से आँखों को सुकून मिलता है, जिनका तन बादल के समान श्याम वर्ण का है तथा जो अपने सभी चारों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। जिनका आभूषण वन माला है, जिनके नयन अद्भुत और बड़ा है तथा जिनकी कीर्ति सागर के तरह विशाल है ऐसे भगवान आज प्रकट हुये हैं जो खर राक्षस का हनन करने वाले हैं।
कह दुई कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता ।।
अर्थ : दोनों कर (हाथ) जोड़कर सभी कहने लगे – हे अनंत भगवन हम आपकी स्तुति और पूजा किस तरह से करूँ, क्योंकि वेद पुराण जैसा पवित्र ग्रन्थ ने तो आपको माया से परे , गुण और ज्ञान का पराकाष्ठा बताया है।
करूना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता ।।
अर्थ : आप एक साथ करुणा और सुख के सागर (भंडार) हैं और साथ ही सभी गुणों से परिपूर्ण हैं आपके गुणों का बखान संतो के श्री मुख से सुना है | मेरे कल्याण के वास्ते , जान जान से प्रेम करने वाले , भगवान श्री राम आज इस धरा पर प्रकट हुए हैं |
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
अर्थ : आपने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया है , आप ही सम्पूर्ण माया मोह रूपी जाल के निर्माता हैं ऐसा हमरा ग्रन्थ वेद कहता है | माता कहती है कि मेरे गर्भ में ऐसे भगवान निवास किये , यह अविश्वसनीय सत्य है और यह सुनकर ज्ञानी भी अपनी बुद्धि खो बैठता है |
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
अर्थ : माता के इस तरह के विचार पर भगवान मुस्कुराने लगे और माताओं को ज्ञात हो गया कि प्रभु बहुत प्रकार का चरित्र करना चाहते है | तब प्रभु ने माता को अपनी पूर्व जन्म कि कथा सुनाये और बताया कि उन्हें वात्सल्य जीवन व्यतीत करने में सहयोग करे और पुत्र के तरह प्रेम करे |
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा ॥
अर्थ : यह सुनकर माता कौसल्या का मत परिवर्तित हो गया और बोली यह रूप आप त्याग करो और शिशु का रूप धारण कर बाल लीला करें| आपका सुन्दर बाल रूप मेरे लिए सर्वोत्तम सुख के सामान है
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा ॥
अर्थ : अपनी माता की सुन्दर बातें सुनकर, सबके मन की भाव को जानने वाले श्री सुजान (भगवान श्री राम ), बाल्य रूप धारण कर बच्चों की तरह रोदन शुरू कर देते हैं | स्वामी तुलसी दास का कहना है कि भगवान राम के इस स्वरुप का चित्रण जो कोइ भी भाव से गाता है वह जीवन मरण के इस चक्र से मुक्त होकर श्री पद को प्राप्त कर लेता है |
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार ॥
अर्थ : ब्राह्मणों जो धर्म का रक्षक है, गौ माता, देवताओं और संतों के हित की रक्षा करने के लिए भगवान बिष्नु ने धरती पर अवतार लिया |